Sunday, March 9, 2008

कुछ लिख पाऊँगा... कभी जाना ना था।

हम इंसान काफ़ी पेचीदा नसल के मालूम होते हैं। हम में अच्छे और बुरे, दोनों की हदें मौजूद हैं। जैसे एक भव-संसार हमारे बाहर, उतना ही अन्दर। सोच है, भाव हैं, एहसास हैं। इन एहसासों को परिभाषित करना मुश्किल है, क्योंकि हर एहसास से कई लड़ियाँ जुड़ी हैं, जो एक family tree की तरह अलग अलग वेश में, बहुमुखी ढंग से, कई दर्जों में, हमपर अपना प्रभाव छोड़कर इन एहसासों को जन्म देती हैं।

कुछ दस साल पहले मैंने अपने अंदरूनी और बहरी जीवन के सवालों की खोज में पहला कदम रखा। कदम फिर थमे ही नही। करीब एक साल हुआ, मेरे कई सालों के अंदरूनी अनुभवों ने, बहुमुखी ढंग और वेश में, कई दर्जों में मुझपर ऐसा प्रभाव डाला, जाने कैसे मैंने पनपे एहसासों को कलम के ज़ोर पे उतारा।

एक विचित्र बात और हुई। यूँ तो हिन्दी मेरी मात्र्भाषा है पर कुछ globalized भारत के दोष पर और कुछ अंग्रेज़ी भाषित साहित्य के आत्मसाथ होने पर, अंग्रेज़ी एक तरह से मेरी पहली भाषा बन गई। मेरा अधिकतम सोचना , बातचीत करना इसी भाषा के संयोग से हुआ। पर विचित्र यह, की एक साल पहले जब कलम को कागज़ पे चलाया तो उसने हिन्दुस्तानी भाषा को अपना माध्यम चुना। मुझे बहुत अच्छा लगा, एक अपनापन भी महसूस हुआ। कुछ भावों और एहसासों को माँ की बोली ही परिणाम दे सकती है, यह ज्ञात हुआ।

कठिनाईयां भी बहुत आई, मेरे शब्दकोष का शस्त्रागार विस्मित एवं हल्का जान पड़ा। अन्दर उबलते सोच-विचारों का, दिल से निकलती सूक्ष्म आहों का बाहरी बहाव, कुछ थम थम कर आगे बड़ा। मैंने कभी किसी हिन्दुस्तानी के ज्ञानी से अपनी लेखनी का विश्लेषण नही कराया, और यह आज भी ऐसा ही है। यह भी नही मालूम जो थोडा बहुत है, वह कितना सही। स्थिति पेचीदा हुई जब लेखन के माध्यम में, कविता का माध्यम और जुड़ गया। ना कविता की grammar की समझ, ना लेखन के grammar की समझ और ना भाषा के grammar की समझ की नासमझी में मैं अकेला आगे बढ़ता गया। कुछ मित्रों के साथ एक-दो संवाद बाटें। उनके उत्साह और प्रोत्साहन से साहस बंधा। ऐसे में मेरे परिचित मलय से अच्छा सुझाव आया। उन्होंने मुझे अपने लेखन को blog करने को कहा, तो मैंने भी अपने सुरक्षित संसार से बाहर आने का ढानढस बंधाया। Google का transliteration software कठिनाई के साथ, काम का साबित हुआ। और शुरू हो रहा है एक नया सफ़र, जो उम्मीद है आगे बढ़ेगा ,

चाहे थम थम कर ही सही...

1 comment:

Malay M. said...

Unhon kiya bismillah aur besaakhtaa ham kah baithe ...
...
...
Vallah ...

Blog ki duniya main kadam rakhne par aapka swaatgat ... maanav ke baad aapke kavi hone ka shak hua tha , sahi nikla ... ( door se soongh leta hoon , main zaroor pichle janam main kutta tha ... ) ... vaise aapka likha padh kar bahut khushi ho rahi hai , badhai , yun hi likhte rahiye ...

Kavita ke hamesha ke maatra-niyamon ke hisaab se , ham teeno yani aap , main aur maanav main, sabse sudridh aap jaan padte hain isliye grammer ko lekar aapka khud par avishvaas khuch sahi nahi hai ... english aur Hindi ki achchi khaasi jaankari rakhne vaale aap ne urdu ke shabdon ka badi aasani se istemaal kar ke aur bhi ashcharya main daalaa hai ...