जान पहचान का पहला सवाल,
क्या करते हो ?
लिखते हो, कवी हो,
पर क्या करते हो ?
अब क्या कहें, कुछ कोशिश तो करें:
दुनियादारी से कटा मेरा सवेरा ,
गुमनाम पहर का गुमनामी बसेरा ,
कुछ ना करने की कला में माहिर ,
एक बेकार हूँ मैं ।
गिरते सब्ज़ पत्ते, आवाज़ हूँ सुनता ,
मैली धुप है, धूमिल बातें करता ,
रफ़तारी ज़िन्दगी में पीछे छूटा ,
एक बेकार हूँ मैं ।
सब दौड़ रहे हैं अव्वल आयें ,
कुछ तिगडम करें, पीछे रह ना जाएं ,
थकी उम्मीदों का पहला वारिस ,
एक बेकार हूँ मैं ।
कभी मुझपे भी कुछ आस टिकी थी ,
कुछ कर जायेगा, बात सुनी थी ,
प्रयास की शिला से डगमगाता ,
एक बेकार हूँ मैं ।
न ज़माने का प्यार मिला, न रुसवाई ,
न जान को कोई खतरा, न मान पे ठेस आई ,
हम जैसों की खबर लगाओ ,
एक नज़र इधर भी बढाओ ,
अपनी आँखों में गिरा हुआ,
एक बेकार हूँ मैं ।
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