Tuesday, March 11, 2008

क्या करते हो ?

जान पहचान का पहला सवाल,

क्या करते हो ?

लिखते हो, कवी हो,

पर क्या करते हो ?


अब क्या कहें, कुछ कोशिश तो करें:


दुनियादारी से कटा मेरा सवेरा ,

गुमनाम पहर का गुमनामी बसेरा ,

कुछ ना करने की कला में माहिर ,

एक बेकार हूँ मैं ।


गिरते सब्ज़ पत्ते, आवाज़ हूँ सुनता ,

मैली धुप है, धूमिल बातें करता ,

रफ़तारी ज़िन्दगी में पीछे छूटा ,

एक बेकार हूँ मैं ।


सब दौड़ रहे हैं अव्वल आयें ,

कुछ तिगडम करें, पीछे रह ना जाएं ,

थकी उम्मीदों का पहला वारिस ,

एक बेकार हूँ मैं ।


कभी मुझपे भी कुछ आस टिकी थी ,
कुछ कर जायेगा, बात सुनी थी ,
प्रयास की शिला से डगमगाता ,
एक बेकार हूँ मैं ।

न ज़माने का प्यार मिला, न रुसवाई ,

न जान को कोई खतरा, न मान पे ठेस आई ,


हम जैसों की खबर लगाओ ,

एक नज़र इधर भी बढाओ ,

अपनी आँखों में गिरा हुआ,

एक बेकार हूँ मैं ।

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