Tuesday, March 11, 2008

मेरा बड़ा ज़ुल्म...

मेरा ज़ुल्म ना छोटा, के बहुत बड़ा है ,
ऐ अज़ीज़ों, मुझको प्यार करना ना आया ।

कुछ की कोशिशें, दिल लगाने की इबादत ,
ताउम्र तवील रातें, है तन्हाई की आदत ।
सुर्ख पाक़ हुस्न-ए-दिलारा रास ना आया ,
शरीक-ए-हयात-ए-ख्वाब मुझको ना भाया ।

उसने किया प्यार, बेइंतहा निभाया ,
दर्द ही दमसाज़ हुआ, दुख ही सरमाया ।
जला उसका दिल, मोहब्बतें राख हुईं ,
कुचली आहें पनपी, तल्खी-ए-अय्याम हुईं ।

दिलकश हुस्न ने खून-ए-दिल हथियार चलाया ,
मेरा बड़ा ज़ुल्म, क़यामत-ए-बाज़ार ले आया ।
जले ज़ार ज़ार, दिलजले की आग में ,
ना ज़मीर, ना वजूद, ज़िल्ल्तों के राग में ।

बेपाक़ नस्ल, गलाज़ते-ए-पैदाइश हो गया ,
गन्दा खून, बदबूदार जिस्म-ए-नुमाइश हो गया ।
थूको मुझपे, थोड़ा इल्ज़ाम तो लगाओ ,
कुछ मेहनत करो, जायज़ सज़ा तो दिलाओ ।

के मेरा ज़ुल्म ना छोटा, बहुत बड़ा है ,
ऐ अज़ीज़ों, मुझको प्यार करना ना आया ।

No comments: