Wednesday, March 12, 2008

'सबसे खतरनाक होता है, हमारे सपनो का मर जाना'


'सबसे खतरनाक होता है, हमारे सपनो का मर जाना' । ऐसा मैं नही कहता, पंजाबी के प्रसिद्ध कवि 'पाश' कह गए। पर मैंने भी इस वाक्य को निजी तौर पे जिया है, आत्मसाथ किया है । सपने यूं तो , कई हो सकते हैं, सफ़र का सपना , हमसफ़र का सपना , आशाओं का सपना , निराशाओं का सपना , अलग हटके कुछ कर दिखाने का सपना , दुनिया की अन्यायों को खत्म करने का सपना , दुनिया की सुन्दर्ताओं को अपनाने का सपना । और अगर ज़्यादातर की बात करें तो पैसे कमाने का सपना , घर बनाने का सपना , सुशील जीवन साथी का सपना, वगेरह । सपने वह भी हैं जो दिल से उपजते हैं , और वह भी जो समाज हमपर लाद्ता है । पर सच तो यह है , हम सब ही सपने देखते हैं , और उन्हें पूर्ण करना चाहते हैं , 'किसी भी कीमत पर' ।

जहाँ पर 'हर कीमत' की बात आ जाती है, वह लोग तो अपने सपने पूर्ण कर ही लेते हैं , क्योंकि उनके सपनों की कोई अंदरूनी प्रेरणा नही होती , वह होते हैं सपने ख़ुद को स्वीकार्योग्य अभ्यासों में ढालने के लिए , दुनिया में अपनी जगह बनाने के लिए । सो वह दुनियादारी की कीमतों पर उसे दुनियादारी की सहायता से पा ही लेते हैं।

पर उनके सपनो का क्या , जो हैं हीं दुनियादारी के असूलों के विपरीत , जो तोड़ना चाहते हैं उन नियमों को जो हमें बाँधना चाहते हैं , अपने ही जैसे ; जो रोकते हैं , हमारे वास्तविक विचारों को , खरे ख्यालों को , मदहोश एहसासों को , अपने ख़ुद के ज़ोर पर ढलने से ।

क्या आपको कभी मौत आई है ? मुझे आई है , और एक नही अनेक मौतें । क्योंकि जब जब हमारे सपने मरते हैं , उनके साथ हमारी भी एक मौत हो जाती है । यह मौत बहुत दुखदायी होती है । मेरे कोई बच्चे नही हैं , पर शायद यह दर्द उतना ही हो , जब हो हमारे एक बच्चे की मौत । भगवान् ना करे ऐसा किसी के साथ हो , पर अपने बच्चे की मौत पर दुनिया शोक मनाती है , दुःख में करीबी साथ होते हैं । लेकिन जब होती है एक सपने की मौत तो किसी को कोई ख़बर नही मिलती , कोई ना आता शोक जताने , दुःख में साथी बनने । ऐसे में एक ही साथिन , अपने नियम से निसंदेह आ जाती है , और वह है उदासी । होता है अन्दर एक खालीपन , जो तड़पाता है , रुलाता है , डराता है , दुखों की नदियों में सैर कराता है। और शायद ज़्यादा घबराहट में ही हम निकल पड़ते हैं , एक नए सपने के साकार होने की उम्मीद की ओर । शायद एक बच्चे का साथ दूसरे की जुदाई का ग़म कुछ कम कर सके ।

ना जाने क्यों , फिर हो जाती है उस सपने की भी मौत । क्या करें , हमारे कोई भी सपने , दुनिया के नियम से जो नही चलते । और फिर आता है समय , ऐसी कई मौतों के बाद , जब नही होती किसी सपने की आस । और इस बार कोई घबराहट , कोई डर , कोई तड़प नहीं होती । कितना खतरनाक होता है वह मंज़र ।

तब याद आती है , पाश की कही बात , और उनकी कविता जो पहले से समझ में आती थी , पर अब साथ में जी भी जाती है । (और मज़ाकिया बात यह की उनकी कविता का संदर्भ है कुछ अलग मेरे यहाँ पर लिखे विचारों से) । अन्दर सब ख़त्म हो जाता है , ना आशा होती है , ना निराशा , लोग-बाग़ आपके इर्द-गिर्द हस्ते हैं , और आप बस एक हलकी मुस्कराहट लिए बैठते हैं ।

उन खुशमिजाज़ोन के सपने कुछ पूरे हो गए , और जो नही , जल्द ही हो जायेंगे ।

हम होते हैं अकेले , चाहे भीड़ में , चाहे घर पे । होते हैं संवाद , केवल उदासी से । हम में से कुछ को पछतावा भी खल आता है , क्यों ना चले नियमों से , ऐसी सोच भी कभी कभी डगमगाती है । क्यों जिया ऐसा जीवन , बात बहुत कम , पर हलकी सी कचोट जाती है ।

लेकिन वापसी के सारे रास्ते बंद हो गए , खुले होते तो भी ना लेता उन्हें । अगर पूर्ति ना हुई एक भी आस की तो क्या , यह तो ज्ञात है , जो है , है अपना निर्णय । गर नही मिला कुछ भी हाथ में तो क्या , उपजाया तो उन्हें अपने खयालों में । अब एक प्रेत वास है तो क्या , मन में कभी सबसे सुंदर मानस के वास की आकांक्षाएं तो थीं । अब है अन्दर एक मरुस्थल , फिर भी जिए जा रहे है । आख़िर क्यों...

शायद है एक नए सपने की तलाश , जो हो समाज के कार्यक्रम से विपरीत , जो हो अब तक का सबसे खतरनाक सपना । इतने सालों के धैर्य ने दिया है और बड़े झटकों को झेलने का बल । तृष्णा फिर जागेगी , उल्लास फिर आएगा , उमंग फिर होगी खयालों में , एक नए सपने की पूर्ति की आस में...

और उसे फिर बिखरते देख , सहने के लिए परस्पर तैयार मेरा अन्दर ...

11 comments:

Malay M. said...

This piece of writing is not about pain , dejection , hopelessness or feeling of being a misfit into the system , or for that matter being a rebel either ... this is about the journey from 'boyhood' to 'manhood' ... this is about transitional phase of a boy into a MAN ...

How much pain we go thru , it depends upon how big we have dared to dream/have tried to achieve ... we live in cynical/materialisitic times where every thing comes attached with a price tag ... earlier only objects used to be commodities , now it has stretched to even humans/ideas/thoughs/aspirations/dreams ... the world belongs to buyers & sellers , & ideology is 'give n take'...rebels are strictly barred/executed coz they pose threat to the entire system , the system which rules ...

So ... what is the way out ...?

Remember Lord Krishna ... how he conquered ... first take the entry within 'their' system ... know it well, but dont let yourself get lost into it ... strike when the right time comes ... this is also called 'chakravyuh bhedan'...if your basics/ideology/concept were correct/true , u will win ... if not , their will be other krishna on the horizon who will finish u n ur created system ...

It is tough to be part of 'their' system ... ? remember 'sagar manthan' ... jewels emerged only after a lot of 'vish'( poison ) came out ... the beauty lies in Lord Shiva coz he swallowed all of it but did not gulp in ... till he got to drink 'amrit' , became immortal ... 'vish' then had no effect on him ... great ideologies become immortal only after 'vishpaan' & after yielding 'ratnas' ...

And yes ... that was 'satyug' ... Lord Shiva had to do 'vishpaan' just once ... we live in 'ghor kalyug' ... we will have to do it again n again ... experience a thousand 'vishpaan' each day ... till 'amrit' emerges ... for us ... perhaps for all ...

Anonymous said...

your post read analysis/comprehension/outpour of feelings is a piece of writing in itself. I can see you are a mate in the travails mentioned on my webpage, wherefrom spring your own emotions. Well, you're right, thats how things are so might as well play the game with their (or our) rules. How about, playing a balance between the two...
:)

विजेंद्र एस विज said...

Waah..umda likhaa hai..bada hi sarthak satya..

Anonymous said...

अतुल एक सही बात की है आपने, बल्कि मुझे कहना चाहिये बात शुरू की है। अपने सपनों को मारना तो खतरनाक होता ही उतना ही दर्दनाक होता है दूसरों के सपनों को मार देना, जो हम से जुड़े होते हैं। अक्सर दूसरे के सपने हम कई बार तोड़ देते हैं, कुछ जानकर कुछ अनजाने।

Batangad said...

ब्लॉग का रंग संयोजन सुधारिए पढ़ने में दिक्कत होती है।

Ashish Maharishi said...

बड़ी खतरनाक होती है सपनो की मौत

anuradha srivastav said...

बहुत ही अच्छा लिखा है।

बोधिसत्व said...

भाई पाश हिंदी के कवि नहीं हैं....वे पंजाबी के कवि हैं....

Amitabh Saxena said...

Good Thoughts. Good to see a youngster writing so beautifully in Hindi. Bahut aage jaoge Atul!

bharat bhushan said...

complete poetry of paash in hindi and other punjabi and other languages is available at my blog http://paash.wordpress.com

Dipti Kamble said...

I am amazed to realize that you have such good command on Hindi.