Sunday, March 9, 2008

जीवन का सवाल


चाँद ने कहा , तू कौन है ,
ज़मीं पे खड़ा , आसमां से जुड़ा ,
बहते शब-ओ-सहर में कुछ बहता हुआ ।

राह ने कहा , कहाँ तेरी दिशा ,
साँस की धड़कन , टहलती बिन सरगम ,
झील की नईया , सिरकती बिन खिवईया ।

मौसम ने कहा , कैसी तेरी खिज़ा ,
कलियाँ हुई बेरंगी , बसंती पेड़ हैं झड़ते ,
हुआ आँगन सूखा सूरज, बाहर मेहा बरसते

शब्द ने कहा , क्यों मौन है ,
लफ्ज़ हुए बेमानी , अक्षर गए गुम ,
है सोच पे पाबंदी , एहसास कुछ नम ।

अल्लाह ने कहा , ये कब हुआ ।
मन के कसेमन से , एक आह ने किला पार किया ,

कहाँ क्यों , कब कौन कैसे ,
जीवन का सवाल ही , जवाब हो गया ।


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