Sunday, March 9, 2008

साँप सीढ़ी


साँप से बचकर सीढ़ी चढ़ गए ,
ग्यारह में वह रम गई ।

करती बातें वह फूलों से ,
पेड़ की शाखाएं सहलाती ।
हाथी देख दौड़ कर जाती ,
केले और बिस्किट वह खिलाती ।

उसकी शाम कभी ना आए ,
दिन में ही वह दिल बहलाए ।
जिसका सूरज ढल गया है ,
उसकी रात कभी ना आए ।

दिल में एक छोटा बच्चा है ,
सो कर जाने कहाँ पड़ा है ।
लुका छिपी के इस अवसर में ,
आओ उसको ढूंड के लायें ।

उसका बचपन अब भी देखो ,
खिल खिल करता झूम रहा है ।
ठंडी सागर की रेतों पे,
अब भी कुछ कुछ गूंद रहा है ।

जीवन के इस रहन सहन में ,
पहले सी पहचान नही है ।
हथियारों की फैक्ट्री में एक ,
बच्चों का उद्यान बनायें ।

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